आप यदि एनसीआर के किसी भी शहर की हाईराइज बिल्डिंग में रह रहे हैं तो
आपका घर भूकंप में सेफ है। अनधिकृत कॉलोनियों में बनी चार या छह मंजिल की बिल्डिंग
के बजाय नोएडा अथॉरिटी की ओर से अलॉट ग्रुप हाऊसिंग प्लॉट में बन रही बिल्डिंग
भूकंप के दौरान ज्यादा सेफ हैं। जानकारों के मुताबिक इन बिल्डिंगों का डिजाइन
स्ट्रक्चरल इंजीनियर से अप्रूव्ड कराना जरूरी होता है। साथ ही जब कंप्लीशन
सर्टिफिकेट लेना होता है, तब
भी स्ट्रक्चरल इंजीनियर और फायर डिपार्टमेंट का सर्टिफिकेट जरूरी होता है।
भवन निर्माण तकनीक के एक्सपर्ट आर्किटेक्ट हरीश त्रिपाठी कहते हैं कि
जब भी कोई हाईराइज बिल्डिंग तैयार होती है तो उसकी लंबाई के मुताबिक बेस के लिए
नींव में कंक्रीट का प्लेटफॉर्म तैयार किया जाता है। यह हाईट के अनुसार ही लंबा और
चौड़ा होता है। ऐसी बिल्डिंगों में नैशनल बिल्डिंग कोड का ध्यान रखा जाता है। मैप
जितने भी फ्लोर के हिसाब से पास हुआ हो, बिल्डिंग
भी उससे ज्यादा की फ्लोर का नहीं होनी चाहिए। यदि कोई बिल्डर रिवाइज्ड नक्शा पास
कराना चाहता है तो उसे बुकिंग कराने वाले इन्वेस्टरों से एनओसी लेनी होती है। यदि
कोई बिल्डर मनमाने तरीके से एक्स्ट्रा फ्लोर बनाता अथॉरिटी अलॉटमेंट कैंसल कर सकती
है।
नोएडा अथॉरिटी में पूर्व चीफ आर्किटेक्ट प्लैनर राजपाल कौशिक का कहना
है कि कोई भी हाईराइज बिल्डिंग बनाते वक्त मिट्टी की टेस्टिंग और पानी की कंडिशन देखी
जाती है। इनमें बिल्डर भूकंप रोधी तकनीक इस्तेमाल करते हैं। जापान में अब कोई
हाईराइज बिल्डिंग नहीं गिरती जबकि वहां खूब भूकंप खूब आते हैं। यही वजह है कि
हाईराइज बिल्डिंगें ज्यादा सेफ हैं।
क्रेडाई के मेंबर आरके अरोड़ा का कहना है कि सभी हाईराइज बिल्डिंगों
को भूकंपरोधी बनाना जरूरी है। इस तरह की बिल्डिंग बनाने के लिए फाऊंडेशन को मजबूत
करने की दिशा में सबसे अहम काम किया जाता है। मिट्टी की टेस्टिंग के बाद पाइलिंग
की जाती है। फाऊंडेशन का बेस मजबूत करने के बाद इसे फ्रेम स्ट्रक्चर में बनाकर
बिल्डिंग का निर्माण किया जाता है। इसमें अब जम्प फोम और माईवान (मलेशियन
टेक्नॉलजी) का इस्तेमाल किया जाता है। अब स्लैब और दीवार को एक साथ मिलाकर शेयर
वॉल बनाई जाती है जो सेफ्टी और स्ट्रक्चर के लिहाज से बेहद मजबूत है। स्ट्रक्चरल
इंजीनियर से बिल्डिंग का वेट कराने के बाद इसे आईआईटी रूड़की या दिल्ली से नई
तकनीक के हिसाब से सर्टिफाई भी कराया जाता है।
